(पवन कुमार) बिहार पुलिस गंभीर अपराध के मामलों में किस प्रकार गैर जिम्मेदाराना रवैया निभाती है, इसका एक उदाहरण सुप्रीम कोर्ट में पेश आए एक मामले में देखने को मिला। दहेज हत्या के एक मामले में केस दर्ज करने के बावजूद पुलिस 21 साल तक हाथ पर हाथ धरे बैठी रही और कुछ नहीं किया, जबकि आरोपी इस दौरान बीएसएनएल में नौकरी करता रहा।
वह फरार भी नहीं था। हालांकि पुलिस ने खुद कोर्ट के समक्ष कहा था कि उसके पास आरोपी के खिलाफ पुख्ता सबूत है। इसके बावजूद पुलिस ने आरोपी को घटना के 21 साल बाद गिरफ्तार किया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार पुलिस के प्रति गहरी नाराजगी जाहिर की है।
कोर्ट ने बिहार के डीजीपी और पटना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी कर पूछा है कि आखिर इतनी देरी क्याें हुई। दहेज हत्या की यह घटना वैशाली के राजापाकर थाने में दर्ज की गई थी। राजापाकर थाना कांड संख्या 8 /1999 है जो 2-2-1999 को दर्ज हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के डीजीपी से पूछा- गिरफ्तारी में इतनी देरी की वजह क्या है?
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकात और जस्टिस अनिरूद्ध बोस की पीठ ने इस मामले में आरोपी बच्चा पांडेय की जमानत याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने बिहार के डीजीपी और पटना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी कर पूछा है कि आखिर इस देरी की वजह क्या है? कोर्ट ने उक्त दोनों को 4 सप्ताह में अपना जवाब दायर करने को कहा है। अब कोर्ट चार सप्ताह बाद इस मामले की सुनवाई करेगा।
- जस्टिस रमना ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि हम पटना हाईकोर्ट द्वारा आरोपी बच्चा पांडेय की जमानत याचिका खारिज करने के फैसले में दखल नहीं देंगे। मगर इस मामले में रिकार्ड में दर्ज साक्ष्य चौंकाने वाली स्थिति को दर्शाते हैं। दहेज हत्या के मामले में 2 फरवरी 1999 को पुलिस ने मृतका के भाई की शिकायत पर उसकी बहन के पति व बहन के ससुराल वालों के खिलाफ केस दर्ज कराया था। इसके बावजूद पुलिस ने 21 साल तक आरोपी बीएसएनएल कर्मचारी को गिरफ्तार नहीं किया। उसे 7 जून 2020 में गिरफ्तार किया गया।
- पुलिस ने 10 साल की देरी से अपनी चार्जशीट रिपोर्ट दायर की थी। जिसमें उसने कहा था कि पीड़िता की बिसरा जांच में अत्यंत जहरीला पदार्थ पाया गया है और उनके पास आरोपी के खिलाफ ठोस साक्ष्य हैं। उसके बाद भी पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार करने में 11 साल का और समय ले लिया। इतनी देरी परेशान करने वाली है। इस देरी का कारण भी स्पष्ट नहीं है। यह काफी चिंताजनक है। लिहाजा, डीजीपी बिहार और पटना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल एक रिपोर्ट दायर कर इस देरी का कारण स्पष्ट करें।
- बच्चा पांडेय ने पटना हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका दायर की। जिसे हाईकोर्ट ने 14 फरवरी 2020 को खारिज कर दिया। 7 जून 2020 काे गिरफ्तारी के बाद बच्चा पांडेय ने वैशाली जिला अदालत में जमानत याचिका दायर की लेकिन जिला अदालत ने 12 जून 2020 काे खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट ने भी 6 जुलाई 2020 को इस निर्णय को बरकरार रखा। इसके बाद आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी 15 अक्टूबर को उसकी याचिका खारिज कर दी।
यह था पूरा मामला
बिहार पुलिस ने भाई की शिकायत पर उसकी बहन के ससुराल वालों व पति के खिलाफ 2 फरवरी 1999 को दहेज हत्या का मामला दर्ज किया था। शिकायतकर्ता का कहना था कि उसने अपने बहन का विवाह 1993 में बच्चा पांडेय से किया था। विवाह के बाद से ही उसकी बहन को दहेज की मांग करते हुए प्रताड़ित किया जाने लगा। उसे 2 फरवरी 1999 को किसी अज्ञात से सूचना मिली कि उसकी बहन काे मार डाला गया है।
बच्चा पांडेय व उसके परिजनों ने उन्हें बिना इसकी जानकारी दिए उसकी बहन का अंतिम संस्कार कर दिया। पुलिस ने करीब एक दशक तक मामले में कोई कार्रवाई नहीं की। पुलिस ने मामले में 10 साल की देरी से 30 सितंबर 2009 को चार्जशीट दायर की थी। पुलिस ने कहा था कि उनके पास आरोपी के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं। पीड़िता की बिसरा जांच में अत्यंत जहरीला पदार्थ पाया गया है।
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