ये गया है। पितृपक्ष में पितरों को तर्पण देने के लिए देश-विदेश में चर्चित शहर। इस शहर को लेकर और भी तमाम कथाएं हैं। चलिए आज हम आपको इसी गया शहर के ‘मथभुकौव्वल’ वाले स्थान का परिचय कराते हैं। डीएम ऑफिस का तिराहा। तिराहे के दक्षिण में नगर निगम की जमीन पर सालों से चल रही चाय-समोसे की दुकान। इस दुकान के पश्चिम में एसएसपी ऑफिस है और इसके ठीक पीछे नगर निगम का दफ्तर।
यहां आने वाले लोग इस जगह को ‘मथभुकौव्वल’ कहते हैं। ‘मथभुकौव्वल’ मतलब माथा खाने वाला या कह लें ‘सिर खाने वाला’...जाहिर सी बात है ऐसा नाम किसी ‘भुक्तभोगी’ ने ही ‘आजिज’ आकर दिया होगा!
दोपहर के तीन बज रहे हैं। कड़ाही के खौलते तेल में जिस तरह समोसे सफेद से सुर्ख हो रहे हैं, बगल के भगोने में खौलती चाय भी धीरे-धीरे रंग बदलते हुए कड़क हो रही है। यहां बिना देर तक खौली कड़क चाय के बात आगे ही नहीं बढ़ती। चाय के इंतजार में कुछ अधेड़ उम्र के लोगों की मंडली बातों में मशगूल है। इन बातों से निकलती ध्वनि ने मुझे भी करीब आने को मजबूर कर दिया।
उनके पास पहुंचते ही झक सफेद कुर्ता-पायजामा पहने सज्जन बोल पड़े। ‘अरे जानअ हीं, पॉलटिक्स तो सांप-सीढ़ी के खेल हो गेलई है। जइसही आगे बढ़मीं संपबा काट लेतउ। ओकरा बाद छटपटइते रहिए। देखलहीं न, चिरगवा कइसे कर देलकई। संउसे के बुद्धिए हेरा देलकई। एकरो पीछे गेम हई हो। खैर चाहे जो हो, एदम से संपबा जइसन काटलई हे। नीतीश के तो बोखार छोड़ा देलकई हे। अ ई अकेले ना हई हो, वीआईपी के सन ऑफ मल्लाह के देखहीं, उ अलगे फन उठइले हई।'
तभी इस सज्जन की बात काटते हुए किसी और ने मोर्चा संभाल लिया... बोला, 'जब रामविलास पासवान जिंदा हलथिन त कोई पार्टी उनका महान ना कह हलई। अब सब उनका महान कह के अप्पन-अप्पन बांह पुजबाबे मे लगल हई। अ चिराग हई कि केकरो सुनते न हई। ऊ हो पट्ठा पक्का राजनीतिज्ञ निकल गेलई।'
इसी बीच एक अन्य सज्जन बीच बहस में कूद पड़े- ‘जानते हैं जी, ई राजनीति के नेतवन झूठे देश सेवा कहता है और पेंशन उठाता है। पांच साल के लिए विधायक बनता है आ भर जिनगी पेंशन लेता है।’
अरे का कह रहे हैं, कहां हैं आप ! पांच साल नहीं, ढाई साल बोलिए।
अरे कहां रहेंगे, बिहार में हैं, और कहां!
त ठीक है आप याद कीजिए 2005 का राजनीतिक सीन। सरकार कुछ ही दिन बाद गिर गई थी, पता है न ! और फिर से चुनाव हुआ था कि न...कहिए! उस समय जे नेता जीता था, उसको पेंशन इस समय मिल रहा है कि नहीं… बताइये!
हां हो, भईवा ईहो बात सहिये है। सही न है तो और का! खाली माथा भुकाते हैं आप।
तभी एक अन्य सज्जन इस मथभुकौव्वल के दंगल में कूद पड़ते हैं, ‘भाई, देश सेवा 1970 के बाद से समझो कि खत्म हो गया है। अब तो देश सेवा के नाम पर खाली लूट-मार है। अब बताओ, जो नेता दो-चार करोड़ रुपया देकर टिकट लेगा, ऊ का देश सेवा करेगा।'
इसी बीच सफेद झक कुर्ता-पायजामा पहने एक दूसरा व्यक्ति उनसे मिलने आ पहुंचा और सभा में अचानक शांति पसर गई। पहले वाले सफेद कुर्ता-पायजामा पहने हुए सज्जन किनारे जाते हैं और दूसरे वाले के कान में कुछ कहते हैं... फिर धीरे से चल पड़ते हैं।
इधर, चाय दुकानदार अपने ग्राहकों की सेवा में लगा हुआ है।
झक कुर्ता-पायजामा पहने व्यक्ति का नाम!...अरे जाने दीजिये ‘नाम में का बा’...ठीक वैसे ही जैसे आजकल गाना चल रहा है... ‘बिहार में का बा’...!
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar
No comments:
Post a Comment